शुक्रवार, 6 मार्च 2009

माँ के चरणों में ......
सुप्रभात ,कैसे हें आप ?
रोजी रोटी की जुगत में ,
संबंधों का ठीकरा बार बार उठाकर जमीन पर रखना पड़ रहा है ,
ऐसे में मुलाक़ात और बात दोनों कम हो रही है ,
मगर इस बात का निरंतर एहसास है कि लौट के बार बार आपके पास ही आना है ,
क्यूंकि आपके पास ही हमारी थाती है और आपके पास ही हमारी ठौर
स्वीकार करें मेरा अभिवादन माँ को लिखी इस कविता से ,
जिसे मैं हर पल याद करता हूँ
आसमान में बादल नहीं
चाँद खिला है माँ
बादल बरसते हें चाँद नहीं
हम फिर छले गए इस आसमान से
पीछे की पहाडी / कब हरी होगी माँ
कब आयेंगे पश्चिम के मेघ
नाले चल रहे होंगे
बादल कहीं नजर नहीं आते
मिटटी !
तुम्हारे चेहरे की भांति /सुखी हुई
और आँखें टकटकी लगाये देखती हें
निष्ठुर आसमान की और
कभी सूरज/कभी चाँद
मुँह चिढाते हैं हम बौछारों के मौसम में
धुप से बचाव के छाते लगते हैं ..........

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