मंगलवार, 3 मार्च 2009

सावधान......
क्या आप सोशल नेटवर्किन्ग साइट को अक्सर खंगालते हैं। अगर हां, तो आपके लिए बुरी खबर है। एक साइंस जर्नल में छपीरिपोर्ट के मुताबिक, यह आदत न सिर्फ आपकी सेहत के लिए खतरनाक है, बल्कि कैंसर जैसी घातक बीमारी की कगार पर भी धकेल सकती है। बायॉलजिस्ट नाम के जर्नल में साइकॉलजिस्ट एरिक सिगमन बताते हैं, लोगों से मिलने-जुलने की बजाय ईमेल भेजने की आदत के इंसान पर सीरियस बायॉलजिकल इफेक्ट पड़ते हैं। डेली मेल ने सिगमन के हवाले से बताया कि बढ़ते अकेलेपन से हमारे जीन के काम करने का ढंग भी बदल जाता है। इम्यून सिस्टम, हॉर्मोन लेवल और आर्टरीज का फंक्शन भी सुस्त पड़ जाता है। इससे इंसान का दिमागी कामकाज भी लड़खड़ा सकता है। जिसका नतीजा कैंसर, स्ट्रोक, हार्ट डिजीज और डिमेंशिया का बढ़ता रिस्क हो सकता है।सोशल नेटवर्किन्ग साइटें लोगों को साथ जोड़े रखने के मकसद से डिजाइन की गई हैं, पर इनसे लोग अकेलेपन का शिकार होते जा रहे हैं। रिसर्च बताती है कि दूसरों से आमने-सामने बातचीत करने में बीतने वाले घंटों का आंकड़ा साल 1987 की तुलना में काफी गिर चुका है। ऐसा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से हुआ है।
क्रिकेटवाद ........
"भारत में होती है क्रिकेट की पूजा,
क्रिकेट का खेल, अपने आप में ही है दूजा।
हमारे जाबाज़ जब - जब खेलते आयें हैं,
विपक्षी टीम के हा छक्के छुड़ाते आयें हैं।
अपने इस इतहास पर हम अमल करते आयें हैं,
इंग्लैंड की टीम को एक बार फिर भंगी बनाकर आयें हैं।
देश के खातिर वीर जवान प्राणों की सलामी देते हैं,
हर बात का मुहतोड़ जवाब देने का,
प्रण हम लेते हैं।जिस तरह हमारे खिलाडी,
मैदान के चरों ओर रनों को बरसाते हैं,
विपक्षी टीम को १-१ रनों को तरसाते हैं,
उसी तरह हमें भी इन आतंकवादिओं को तरसाना है,
हमारी वाइड बाल पर इन्हें रन मिले,
या फिर ye बम गोलों के छक्के चौके लगाएं,
इससे पहले इन्हें clean बोल्ड कर दिखाना है.."
ये क्या हो गया है......
"हर ख़ुशी हैं लोगों के दामन मे,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया मे
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो हैं
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके हैं
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
सारे नाम मोबाइल मे हैं
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरो की क्या बात करे
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं
आँखों मैं हैं नींद बड़ी पर सोने का वक़्त नहीं
दिल हैं ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक़्त नहीं
पैसे की दौड़ मैं ऐसे दौडे
की थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसासों की क्या क़द्र करे
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा की
हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.....
"I luv these beautiful lines...."
मुश्किलों मे भाग जाना आसान होता हैं
हर पहलु ज़िन्दगी का इम्तिहान होता हैं
डरने वालों को कुछ मिलता नहीं ज़िन्दगी मे
और लड़ने वालों के कदमो मे जहाँ होता है....
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती....
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
अगर रख सको तो...
अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
सबको प्यार देने की आदत है हमें,
अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
जो समझ न सके मुझे,
उनके लिए "कौन"जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
"अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ,,,,
आर्थिक संकट और अमेरिकी राष्ट्रपति
इन दिनों, यदि हमारे चारों ओर कोई शब्द सुनाई देतें है वो हैं आर्थिक संकट और उससे उबरने के लिए सरकार का प्रोत्साहन कार्यक्रम, ऐसा लगता है इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है.वर्ष १९२९ में शेयर मार्केट गिरने के बाद अमरीका ही नहीं पूरी दुनिया में मंदी का दौर छा गया था. बैंक, व्यापार, सभी बडी-बडी संस्थाऐ इसकी गिरिफ़्त में थी. लाखों लोग बेरोज़गार हो गए थे. आर्थिक मंदी के इस दौर में फ्रैंकलिन रोज़ावेल्ट अमरीका के राष्ट्रपति बने. उन्होंने फिर से सरकार और जनता के बीच एक नया समझौता करवाया जिसका नाम था "न्यू डील ". उसके तहत सरकार ने स्वयं नई नौकरियां दीं, सोशल सिक्यूरिटी, मैडीकेयर,फ़ूड स्टैम्प जैसे कार्यक्रम शुरू किए गये. ये ऐसे प्रयास थे जिन्होंने सरकार और जनता के बीच एक मज़बूत दीवार का सा काम किया. राष्ट्रपति रोज़वेल्ट का ये मानना था कि सरकार का ये फ़र्ज़ है ऐसे मुशकिल के दौर में वो जनता की मदद करे.हुआ भी ये कि उनकी नई योजना अमरीका की अर्थव्यवस्था में एक नई सुबह लेकर आयी.लेकिन १९८० के दशक में राष्ट्रपति रेगन की विचारधारा इससे बिल्कुल हटकर थी उनका मानना था हर इंसान को अपनी ज़िन्दगीअपने प्रयास अपने बल पर जीनी चाहिए, सरकार से सिर्फ़ उसे एक ही आशा रखनी चाहिए और वो है सुरक्षा की कि वो उसकी सुरक्षा का ख्याल रखेगी. और हुआ भी ये कि उस समय तक जारी सामाजिक सहायता के बहुत से कार्यक्रम बंद कर दिए गये.राष्ट्रपति रेगन, माग्रेट थेचेर की तरह मंङी अर्थव्यवस्था में विश्वास करते थे दोनों का ही मानना था व्यापार को आगे बढ़ने में किसी तरह की कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए तभी देश में खुशहाली आती है.लेकिन अब जो मंदी, वर्ष २००८ में शुरू हुई है उसका प्रभाव एक बार फिर पूरे विश्व में छाया हुआ है करोड़ों लोग, दिन पर दिन बेरोज़गारी और मजबूरियों के संकट से घिरा महसूस कर रहें है. ऐसे मुशकिल दौर में अमरीका के नए राष्ट्रपति बराक ओबामा ने, राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रोज़वेल्ट की ही तरह सरकार और जनता के बीच एक नया समझौता करवाने का प्रयास किया है. सरकारी नौकरियां,नए रोज़गार, जनता के लिए आर्थिक प्रोत्साहाहन योजनाये को अंजाम देने का कठिन मार्ग इसलिए अपनाया है ताकि जनता ने जिस सरकार को चुना है वो आम लोगों की मदद कर सके।
क्या रहमान का ऑस्कर जीतना भारतीय फ़िल्म उद्योग के लिए फायदेमंद साबित होगा ?
ए आर रहमान की जीत की खुशी हम सभी को है खास कर इसलिए भी कि रहमान के संगीत को दुनिया भर में उतना ही पसंद किया गया जितना कि भारत में. अमेरिका में भी स्लम डॉग फ़िल्म के संगीत और गानों को बेहद सराहा गया. हिन्दी न समझने वाले लोगों में भी जय हो गाना उतना ही लोकप्रिय हो गया है जितना कि हिन्दी समझने वालों में. रहमान का ऑस्कर जीतना सही मायने में ऐतिहासिक है क्यों कि पिछले कुछ सालों में लगान जैसी फ़िल्म अन्तिम दौर तक पहुंच कर भी ऑस्कर जीतने में नाकामयाब नहीं रही थी. रहमान के पहले कौस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथाय्या को गाँधी फ़िल्म के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला था तो महान निर्देशक सत्यजीत राय को लाइफ टाइम ऑस्कर पुरस्कार से नवाजा गया था. लेकिन अब जब बॉलीवुड और हॉलीवुड के करीब आने की बात हो रही है तो रहमान को फ़िल्म जगत के सबसे बड़े पुरस्कार से नवाजा जाना हम सभी के लिए खुशी की बात है. कुछ जानकारों ने स्लम डॉग के सही मायने में भारतीय फ़िल्म न होने की आलोचना की है, तो कुछ समझते है कि बॉलीवुड को और कहीं पुरस्कार पाने की जरूरत नही है. लेकिन कोई चाहे कुछ भी कहे एक बात तो तय है कि रहमान ने अमेरिका ही नही पूरे विश्व में भारत का नाम और ऊंचा कर दिया है. आम तौर पर बॉलीवुड संगीत से दूर रहने वाले अमेरिकी भी इन दिनों जय हो की धुन गुनगुना रहें हैं. क्या आप को लगता है कि रहमान की इस जीत का फायदा बॉलीवुड को होगा? क्या भविष्य में हम बॉलीवुड और हॉलीवुड द्वारा एक साथ मिलकर बनाई हुई फिल्मों को देखेंगे? क्या आप को लगता है कि भविष्य में और भी भारतीय कलाकार ऑस्कर पुरस्कार को जीत पायेंगे? रहमान ने ये तो सिद्ध कर दिया है की मेहनत और लगन के जोर पर नामुमकिन भी मुमकिन है और इसके लिए आप को हॉलीवुड नही आना पड़ता आप अपने देश में ही अच्छा काम करके ये सब सम्भव है. अब भारतीय फ़िल्म प्रेमी उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले समय में अन्य कोई भारतीय फ़िल्म भी सबसे बेहतरीन फ़िल्म के ऑस्कर को जीत ले....
मत भागो....
शब्दों को पिरोकर हेड़लाईन,
हेड़लाईन को तोड़कर एसटीडी वीओ,
उसमें थोड़ा जोड़कर पैकेज तैयार करने वाले मानूष
ये जिन्दगी बेहद कठिन है...
क्यूं जिये जा रहे हो... इस निरस जिन्दगी को...
उतार फेकों शब्दों के जाल को...
मुक्त हो जाओ एसटीडी वीओ और पैकेज के महाजाल से...
छोड़ दो हेडलाईन का टेंशन...
दूर रहो रन आर्डर के ख़ौफ से...
बदल डालो खुद को...
कर डालो संहार उन सबका ...
जो मार रही तुम्हारी ईच्छाओं को
बन जाओ महापुरुष...
और अपनी दूरदर्शी निगाहें दौड़ाओ...
और अपनी निरस जिन्दगी में प्रेम की गंगा बहाओ...
नहीं रखा कुछ इस समंदर के खारे पानी में...
नमक को निकालकर फेंक दो...
मत भागो एसटीडी वीओ और पैकेज के पीछे
आराम करो...
छुट्टी लो...
मगर इस मायावी नगरी से दूर रहो...
बापू के बन्दर.....
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के !
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के !
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के !
लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के !
सर्वोदय के नटवरलालफैला दुनिया भर में जालअभी जियेंगे ये सौ सालढाई घर घोडे की चाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल......

गैरों में कहाँ दम था.......
गैरों में कहाँ दम था.
मेरी हड्डी वहाँ टूटी,
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.
मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,
उसका पेट्रोल ख़त्म था.

मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,
क्योंकि उसका किराया कम था.

मुझे डॉक्टरों ने उठाया,

नर्सों में कहाँ दम था.

मुझे जिस बेड पर लेटाया,

उसके नीचे बम था.

मुझे तो बम से उड़ाया,

गोली में कहाँ दम था.

और मुझे सड़क में दफनाया,

क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था