मंगलवार, 3 मार्च 2009

मत भागो....
शब्दों को पिरोकर हेड़लाईन,
हेड़लाईन को तोड़कर एसटीडी वीओ,
उसमें थोड़ा जोड़कर पैकेज तैयार करने वाले मानूष
ये जिन्दगी बेहद कठिन है...
क्यूं जिये जा रहे हो... इस निरस जिन्दगी को...
उतार फेकों शब्दों के जाल को...
मुक्त हो जाओ एसटीडी वीओ और पैकेज के महाजाल से...
छोड़ दो हेडलाईन का टेंशन...
दूर रहो रन आर्डर के ख़ौफ से...
बदल डालो खुद को...
कर डालो संहार उन सबका ...
जो मार रही तुम्हारी ईच्छाओं को
बन जाओ महापुरुष...
और अपनी दूरदर्शी निगाहें दौड़ाओ...
और अपनी निरस जिन्दगी में प्रेम की गंगा बहाओ...
नहीं रखा कुछ इस समंदर के खारे पानी में...
नमक को निकालकर फेंक दो...
मत भागो एसटीडी वीओ और पैकेज के पीछे
आराम करो...
छुट्टी लो...
मगर इस मायावी नगरी से दूर रहो...

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