शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

बचपन का सपना और 20 रुपये
कुछ सपने सबसे प्यारे और सबसे नेक लगते हैं ....बिल्कुल ओस की बूंदों की तरह ....नन्ही मुस्कान की तरह ....माँ के दुलार की तरह ....पहले प्यार की तरह ....और मुझे भी बहुत प्यारा था वो सपना ....सच बहुत प्यारा ...एक दम दिल के करीब ...कि जो सच हो जाये तो समझो कि दिल का मयूर नाचने लग जाए......

मैं भी कितना पागल था अजीब अजीब से सपने देखने लग जाता था ...कि अगर ऐसा हो जाए तो कैसा हो ....अगर मैं ये कर सकूँ ......तो आह मज़ा आ जाये ..... ऐसे ही मन में एक प्यारी सी ख्वाहिश पैदा हो गयी ....माउथ आर्गन बजाने की .....कि काश मेरे पास माउथ आर्गन हो तो मैं भी बजाना सीखूं .....कितना अच्छा लगेगा ...जब मैं माउथ आर्गन बजाऊंगा .....बस यही सोचते हुए कभी कभी तो दिल घंटो ख़ुशी से झूमता रहता ....

बस एक बार किसी फिल्म में देख लिए किसी को बजाते हुए ....तो हो गए लट्टू ...कि अरे वाह जब वो बजा सकता है तो हम क्यों नहीं .....और ये बात हमारा बहुत खूब जानता था ...बचपन ....बड़ा ही अजीब होता है ...कैसी कैसी प्यारी प्यारी ख्वाहिशें पैदा कर लेते हैं हम ....मुझे याद है कि बचपन में मेरा भाई बहुत जिद्दी हुआ करता था ...अगर किसी बात की ठान ले तो मजाल है कि उसे पूरा किये बिना मान जाये ...फिर तो चाहे उसको मार लो पीट लो ...कुछ भी कर लो ...पर वो मानने वाला नहीं ....

मुझे अच्छी तरह याद है कि जब महीने के अंतिम दिन हुआ करते थे ...तो कैसे हाथों को रोक कर मम्मी घर का खर्चा चलाती थीं ....आखिर एक मध्यम वर्गीय परिवार के हालत महीने के अंत में ऐसे ही हो जाते हैं ......एक बार जब स्कूल में मैडम ने रंग लाने के लिए कहा था ...कि अगर अगले रोज़ जो बच्चे रंग नहीं लाये तो ...उसे सजा मिलेगी .....

मेरा भाई कैसे जिद पकड़ कर बैठ गया था ...कि अगर स्कूल जायेगा तो रंग लेकर जायेगा ...नहीं तो जायेगा नहीं ....उस दिन घर में पैसे नहीं थे ...शायद महीने का अंतिम दिन होगा ....लाख समझाया कि अगले दिन ले देंगे ...पर नहीं जी ...हमारे भाई नहीं माने ....बात इतनी बढ़ गयी कि पिताजी ने गुस्से में आकर उसकी मार लगा दी ....तब भी वो स्कूल जाने के लिए राजी न हुआ ...तब कहीं जाकर माँ ने अपने संदूक में खोज बीन कर चन्द पड़े हुए सिक्के जमा कर ..उसके रंगों के पैसों का बंदोबस्त किया था .....और मैं बिना रंगों के गया था ....ऐसा था मेरा जिद्दी भाई ....पर एक बार की बात है ...जब राम नवमी के दिन थे ....माँ ने हम दोनों को पास के ही भैया के साथ झाँकियाँ देखने भेज दिया था ...माँ ने दोनों भाइयों के लिए कोई 20 रुपये दिए होंगे .....तब मैंने वो अपने भाई को ही रखने के लिए दे दिए थे ....जब हम वहाँ पहुँचे तो वो अपने दोस्तों के साथ मस्त हो गया ...और मैं उस में रम गया जहाँ लोग अपने अभिनय से लोगों का दिल बहला रहे थे ....मुफ्त में ...शायद कुछ ऐसा रहा हो ....सब कुछ देखने के बाद हम घर वापस आ गए ....अगले दो रोज़ बाद को मेरा जन्म दिन था .... घर पर जन्म दिन मनाया गया ....और जब केक काटने के बाद सभी लोग कुछ न कुछ गिफ्ट दे रहे थे ...तब मेरे भाई ने चमकीली पन्नी में लिपटा हुआ एक तौहफा दिया .....और कहा भैया अभी नहीं खोलना ...बाद में खोलना ....मैंने कहा ठीक है ...पर ये तुम लाये कहाँ से .....वो बस मुस्कुरा भर रह गया .....जब सब कुछ ख़त्म हो गया और सब के जाने के बाद मैंने वो खोला तो उसे देख के मैं उछल पड़ा ...अरे ये तो माउथ आर्गन है .....कहाँ से ...मतलब कैसे लाये तुम ....किसने दिलाया .....मैंने अपने भाई को बोला .....वो बोला उस दिन मैंने पूरे 20 रुपये का यही खरीद लिया था ....उस पल मुझे लगा ...कि हाय ...मेरा जिद्दी भाई भी इस कदर सोच सकता है ...बेचारे ने ना कुछ खाया ...और न ही अपने लिए कुछ लिया ...पूरे के पूरे पैसों से ...अपने इस बड़े भाई के सपने को पूरा करने के लिए सारे के सारे पैसे इसी में खर्च कर दिए ....उस पल मैं बयां नहीं कर सकता कि मुझे कैसा महसूस हो रहा था ...मैंने अपने भाई को बाहों में भर लिया .....सच वो पल भुलाये नहीं भूलता ....मेरा वो जिद्दी भाई ...मेरा वो प्यारा भाई ....अपनी सभी जिद ताक़ पर रख कर मेरे लिए माउथ आर्गन खरीद लाया .....सच उस पल ऐसा लगा कि ...मेरा सपना कुछ भी नहीं था ... ..उस ख़ुशी के आगे जो मेरे भाई ने उस पल मुझे दी थी .....हाँ मुझे याद है कि मैं माउथ आर्गन तो ज्यादा कुछ खास नहीं सीख सका ....लेकिन हाँ सीटी बजाना इतना अच्छा सीखा ....कि भाई क्या ...सब लोग कहते कि "दिल तो पागल है " का शाहरुख़ खान भी मेरे आगे पानी भरे आकर और कहे कि भाई मुझे ऎसी सीटी बजाना सिखा दो .....सच में बहुत सालों तक सीटी बजायी ....पूरी धुन के साथ ...हर गाने पर .....आज भी जब कभी धुन में होता हूँ तो सीटी बजाने लगता हूँ फिर वक़्त ने धीरे धीरे मेरे भाई को जिद्दी ना रहने दिया ...अब वो भी समझने लगा था कि ...एक मध्यम वर्गीय परिवार का गुजारा कैसे चलता है .....जिंदगी कैसे जी जाती है ...... हाँ ये जिंदगी ही तो है ...जो इंसान को सब कुछ सिखा देती है .....पर एक बात जो मुझे जिस पल भी याद आ जाती है ...कि किस कदर मेरे भाई ने उस बचपन में भी मेरी चाहत के बारे में सोचा .....सच बहुत प्यार आ जाता है ...मुझे अपने भाई पर .....मेरा वो प्यारा सा जिद्दी सा भाई

ड्रामा - ऐ - IPL!
आजकल IPL काफ़ी शोरगुल मचा रहा है। इतना शोर कि उसकी गूँज सदन में भी सुनाई दे रही है। अमरीकन नचइये के भड़कीले कपडों को लेकर बवाल मचा हुआ है। आख़िर वह कैसे इतने छुटले कपड़े पहन कर नाच सकती हैं? यह तो अन्याय है - अब हमारे बौलीवुड की अभिनेत्रियों का क्या होगा? आख़िर कुछ दिन पहले ही करीना ने टशन में आकर इतना "वेट लूज" किया है! और ये फिरंगी लौंडियाँ बीच में आकर हमारी राखी सावन्तों के पेट पे लात मार रही हैं!और ये क्या - लो जी श्रीसंत तो रो पड़े! आख़िर हुआ क्या ? भज्जी ने चमाट रसीद कर दिखा दिया कि पंजाब की टीम में न होने से कुछ नही होता - असली पंजाब के पुत्तर वही हैं। अब या तो श्रीसंत ने भी मर्द बनकर भज्जी को चम्टिया देना था या फ़िर चुपचाप सहन कर लेना चाहिए था। मगर पहले तो १०,००० लोगों के सामने प्रसाद पाया और फ़िर करोड़ों के सामने रो पड़े। अब हिंदुस्तान की टीम ऑस्ट्रेलिया जायेगी तो क्या कहेंगे वह लोग ?
वैसे विश्वसनीय सूत्रों का यह कहना है कि प्रीटी जिंटा से "जप्पी" न प्राप्त होने की वजह से वह रो पड़े। अब ये हाल अपनी "यंगिस्तान" की जेनरेशन के आइकन का है तो फ़िर हो गया कल्याण !खैर, मैं तहे दिल से आभारी हूँ IPL का - Is मनोरंजन भरे ड्रामे के लिए! अगला "मैच" भज्जी और शोएब के बीच में होना चाहिए। वैसे साइमंड्स भी इशांत शर्मा के साथ बौक्सिंग मैच का इरादा जता चुके हैं - तो हो जाए SETMAX पे इन्टरटेन्मेन्ट अनलिमिटेड!
नेता के टाइप - रेडीमेड, मेड और थोपित
शेक्सपिअर का कथन है कि कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, कुछ लोग अपने कर्म से महान होते हैं और कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है ।
ऐसे ही भारतीय राजनीति में नेता भी 3 तरह के होते हैं । यद्यपि मैनें सुन रखा है कि आजादी के बाद देश में कोई नेता ही नहीं पैदा हुआ । लेकिन मुझे इस बात पर जरा भी यकीन नहीं है । इतने सारे नेता क्या आसमान से टपके हैं ।
जन्म से नेता - ऐसे नेताओं की संख्या दिनोंदिन बढती जा रही है। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, राजनैतिक पार्टियां अपने अन्दर राजवंशों की तरह बर्ताव करने लगी हैं । पहले युवराज या राजकुमारी शिक्षा ग्रहण कर आने के बाद उत्तराधिकारी घोषित कर दिये जाते थे । ऐसे ही अब राजनीतिक पार्टी के आकाओं के सुपुत्र-सुपुत्रियों का भी भविष्य में पार्टी की बागडोर पकडना सुनिश्चित होता है । पार्टी पर शासन करने के लिये राजशाही खून जरूरी है। जिन्दगी भर पार्टी के लिये मरने खपने वाले वरिश्ठ नेता और कार्यकर्ता उनकी सेवा में लग जाते हैं । यह सोचकर की राजा तो राजवन्श का ही होगा वफ़ादार बने रहते हैं । जन्म से नेता होने के लिये राजपुत्र होना जरूरी नहीं है, बल्कि राजवन्श से किसी न किसी तरह की रिश्तेदारी पैदाइशी नेता बनने की आवश्यक योग्यतायें हैं।
दूसरे तरह के नेता वे होते हैं जो पार्टी कार्यकर्ता से शुरु होकर क्रमशः ऊपर कि तरफ़ सरकते हैं । राजनीति का वह दौर अब समाप्त हो चुका है, जिसमें राष्ट्रीय पार्टियों में भी गरीब घर से आने वाले प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँच गये थे । अभी तो फ़िलहाल ऐसी घटना घटने की कोई सम्भावना नहीं दिखती ।घिस-घिसकर ऊपर जाने वाले नेता अधबीचे तक पहुंचते-पहुंचते समाप्त हो जाते हैं । ऐसे नेताओं का कद हमेशा जन्मना नेताओं से दोयम रहता है। बहुत जोर मारा तो अलग पार्टी बनाकर उसकी अगुआई करते हुए पुरानी पर्टी के नेताओं के सिद्धांत को कायम रखते हैं । या कोई सस्ते हथकन्डे अपनाकर एक दिन में राष्ट्रीय पहचान बना लेते हैं ।
तीसरे तरह के नेता वे होते हैं जिन पर नेतापन थोपा जाता है । इनको कम्पनी के ब्रान्ड अम्बेसडर समझिये । जैसे कोई कार बेचनी है तो किसी मॉडल को उसकी बगल में खडा कर दो । इस तरह के व्यक्ति वे होते हैं जिन्हे "सितारे" कहा जाता है, दूर से अच्छी लगने वाली मनोरंजक वस्तुयें । फ़िल्मी सितारे, मॉडल, क्रिकेट के खिलाडी, बडे-बडे उद्योगपति होते हैं । राजनैतिक दल इनकी लोकप्रियता को भीड इकट्ठी करने के लिये इस्तेमाल करते हैं । इस तरह की नेतागिरी लोकप्रियता की जमा पूंजी को राजनीति में इन्वेस्ट करने की होशियार कोशिश है । प्रायोजित नेता राजनीति में अपने पुराने धन्धे की वजह से ही जाने जाते हैं । यदि काम से रिटायर होकर आते हैं, तो ग्लैमर की एक दुनिया से निकलकर दूसरे में प्रवेश हुआ और एकाध बार सांसद वगैरह हो गये तो पैसा वसूल । यदि अभी काम कर रहे हैं (यद्यपि उधर भी मन्दी चल रही होगी या लोग रिटायर्मेन्ट की मांग करने लगे होंगे इसीलिये इधर रुख किये हैं ) तो चुनाव के बाद फ़िर अपने सूटिंग व्गैरह में व्यस्त हो जाना है भारतीय मानस चमत्कारों से चौंधियाना चाहता है दिमाग से कम भावुकता से ज्यादा काम लेता है, नहीं तो ऐन चुनाव के वक्त आकर पार्टी का सदस्य बनकर चुनाव क्षेत्र में आने वालों और उस क्षेत्र से चुनाव लड़ने की जुर्रत कराने वालों को जनता को रगेद देना चाहिए चाहे वह किसी भी पार्टी का हो